रविवार, 2 जनवरी 2011

Dr.Gynecologist case study

उदाहरण न. 23 -डा. स्त्री रोग विषेषज्ञ
ता.:  12. 10. 1960 समय 18ः10ः00
स्थान- अक्षांष - 27श्53 उत्तर, रेखांषश् 78श्05 पूर्व
व्यवसाय प्राप्ति में सर्वाधिक प्रभावी ग्रह- गुरू ,मंगल,्युक्र
अगला उदाहरण स्त्री रोग विषेषज्ञ एक महिला डॉक्टर की पत्रिका है।
           मेड्ढ लग्न की पत्रिका में उच्च्ियÕा का भार गुरू पर है तर्ािं नवमे्य गुरू नवमभाव में स्वरा्िय में बहुत ही प्रबल है। नवमभाव में नवमेष गुरू तर्ािं दषमेष ्यनि की युति हैं। नवमेष व दषमेष की युति व्यवसायपरक षिक्षा कोसूचित कर रही है। दषमेष ्यनि गुरू की रा्िय धनु में होकर गुरू के स्वभाव के कार्य- व्यवसाय को इंगित कर रहा है। नवमेष, दषमेष अरर््ािंत त्रिकोणेष तथा केन्द्रेष की नवम त्रिकोण में युति बहुत ही शुभ तथा प्रभावषाली होती है। नवमेष व दषमेष की गुरू की राषि तथा नवमभाव (उच्च षिक्षा) में युति ने इन्हें मेडिकल की षिक्षा प्रदान करने में पूर्ण सहयोग दिया। कहने की आवष्यकता नहीं कि गुरू स्वराषि में नवमभाव में बहुत ही प्रवल है।

      लग्नेष मंगल तथा चतुर्थेष चन्द्र केन्द्र स्र्ािंन के स्वामी होकर इस पत्रिका में बहुत शुभ ग्रह है तथा तष्तीय पराक्रमभाव में स्थित है। लग्नेष का पराक्रम भाव में स्थित होना उन्नति तथा उच्च स्तर के फलों की प्राप्ति का सूचक है। चन्द्र तथा मंगल, नवमेष, दषमेष गुरू व शनि से दृष्ट है। लग्नेष तर्ािं चन्द्र पर गुरू के प्रभाव के कारण गुरू से संबधित विड्ढय चिकित्सा के Õेत्रमें रूचि होना स्वाभाविक ही र्ािं।
सर्वविदित है कि मेडिकल की षिक्षा पूर्णतः व्यवसायपरक षिक्षा है, इस पत्रिका में नवमेष, तथा दषमेष की युति है, नवमेष दषमेष या पंचमेष दषमेष का कुछ शुभ संवध होने पर षिक्षा के क्षेत्र का ही कार्य व्यवसाय रहता है। डाक्टर का कार्य स्वव्यवसाय अथवा नौकरी दोनों ही हो सकता है। प्रस्तुत उदाहरण में सप्तम भाव अपने स्वामी से युत होकर अधिक प्रवल है अतश्स्वव्यवसाय के अधिक योग हे।                                           
      सप्तमेष तथा धनेष शुक्र स्वराषि में सप्तम भाव में पर्याप्त प्रभावषाली है, षष्ठेष बुध भी सप्तम भाव में है,इस प्रकार नोकरी करने के संकेत कम तर्ािं स्वव्यवसाय के योग अधिक प्रभाव्याली है । नवम भाव भी अपने स्वामी से युत होकर प्रवल है । अतश्जातिका का स्वव्यवसाय करना निष्चित हुआ।
      शुक्र नवमेष गुरू के नक्षत्र विषाखा में है तथा दषमेष शनि शुक्र के नक्षत्र में है, तात्पर्य यह कि शुक्र का षिक्षा तथा व्यवसाय पर प्रभाव अवष्य संभावी है। नवांष में गुरू शुक्र की राषि वृष में है तथा गुरू शुक्र युति है। नवमेष, दषमेष का शुक्र से संवध होने के कारण इनकी विषेषेज्ञता तथा कार्य का क्षेत्र स्त्री रोग है। यह स्त्री रोग विषेषज्ञ है तथा सफलतापूर्वक स्वव्यसाय कर रहीं है।
शुक्र धनेष तथा सप्तमेष है, स्त्री ग्रह शुक्र ने धनभाव, दषमभाव, सप्तमभाव, नवम भाव पर अपने गुण स्वभाव के अनुरूप (स्त्रियों के क्षेत्र की षिक्षा, तथा स्त्रियों द्वारा धन प्राप्तिा) प्रभाव डाला। भावचक्र में पंचमे्य सूर्य भी ्युक्र की रा्िय तुला में परिलÕित हो रहा है ।
दषमांषचक्र में भी जन्म पत्रिका में ग्रहों के स्वामित्व की दृष्टि से देखें तो कर्मेष शनि ही है जिसकी धनभाव में ्युक्र के सार् िंयुति है। जन्म पत्रिका में शुक्र धनेष व सप्तमे्य है ।
जन्म पत्रिका के नवमे्य गुरू तर्ािं पंचमे्य सूर्य दषमांष चक्र में नवमभाव में ही है। अन्ततः ्ियÕा से गुरू का तर्ािं धनभाव से ्युक्र का सम्बंध हो रहा है । इस प्रकार दषमांष चक्र में भी शुक्र कर्म भाव व धनभाव से संबध रखते हुये जातिका की विषेषज्ञता तथा कार्य को सूचित कर रहा है।
    अब दषमांष चक्र को व्यतिगत पत्रिका की तरह देखंे- दषमांष चक्र में लग्न में शुक्र की राषि वृष है तथा नवमेष, दषमेष शनि व शुक्र की धन भाव में युति है, यहॉ भी शुक्र का नवम तथा दषम भाव से पूर्ण संवध है। नवमभाव में गुरू यद्यपि नीचराषि में है पर उच्चनाथ चन्द्र से युति होने के कारण दोषभंग होकर, नीच भंग राजयोग बना रहा है। नवमभाव में गुरू सूर्य युति, मेडिकल जैसी षिक्षा की पुष्टि कर रही है। दषमांष चक्र में भी सप्तमभाव बहुत प्रवल है, सप्तमेष मंगल स्वराषि में है। अतः गुरू के नवमभाव में होने से डॉक्टरी की षिक्षा, मंगल के सप्तमभाव में स्वराषि में होने से स्वव्यवसाय, शुक्र के लग्नेष व धन भाव में स्थित होने से स्त्री रोग विषेषज्ञता इंगित होते है।